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जागो भारत

मैं कहता आंखन देखी
मैं कहता आंखन देखी
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###जागो भारत####
भ्रष्टाचार समाप्ति का जिनका जिम्मा।।।।
वे ही अब राष्ट्र को लूट रहे हैं ।।
ईमानदार दुबके बैठे हैं घरों में।।।।
बेईमान ही बस यहां एकजुट रहे है ।।
स्वयं कर रहे रोकते अन्यों को।।।।
भारत में यह रीत कैसे चली ।।
लूटेरे सभी अय्यायी कर रहे हैं।।।।
ईमानदारों की हवा हर कदम निकली ।।
मेहनत करने वाले भूखों मर रहे।।।।
मजा मार रहे हैं यहां पर निठल्ले ।।
किसान व मजदूर आत्महत्याओं को विवश।।।।
कुछ भी नहीं है सुनो युवाओं के पल्ले ।।
नोटबन्दी या कैशलैस के नाम पर।।।।
झौंका पूरा भारत सुनों भ्रष्टाचार में ।।
सबसे बड़ा यह घोटाला सिद्ध होगा।।।।
नीति नहीं रही कहीं भी आचार में ।।
उद्योगपत्तियों की चान्दी हो रही।।।।
छोटे उद्योग कतई हो रहे बर्बाद ।।
किसान की खेती घाटे का सौदा बनी।।।।
दौर गुलामी का यह नहीं आजाद ।।
विकास की बातें छलाचरण सुनो।।।।
उजाड़ने की चहुंदिशि हो रही तैयारी ।।
सबसें बड़े घोटाले चल रहे हैं।।।।
कोई नहीं समझता गरीब की लाचारी ।।
गरीब, किसान, मजदूर खड़े कतारों में।।।।
भ्रष्टाचारी खूब कर रहे हैं मौज।।।।
बड़बोलापन ही बड़बोलापन दिखता।।।।
हवाई विकास का बांध रहे धौज।।।।
विकास की बातें बस भाषणों में।।।।
हकीकत में यह कहीं देता न दिखाई ।।
बड़े लोगों के खूब मजे चल रहे।।।।
कैसी शामत यह सुनो गरीब की आई ।।
राष्ट्रवाद, स्वदेशीभावना कहीं नहीं हैं।।।।
निज-मूल्यों का हो रहा है अपमान ।।
जीवनशैली सर्वत्र पाश्चात्य का जोर है।।।।
आर्य वैदिक हिन्दुत्व का कहीं नहीं सम्मान ।।
बस भाषणों में विकास की आन्धी।।।।
हकीकत में धीमी भी चल रही न हवा ।।
धन कुबेरों के वहां सुविधाओं की वर्षा।।।।
गरीब भारतीय को मिल रही न दवा ।।
सबसे बड़े भ्रष्टाचारी नेता व धर्मगुरु।।।।
साथ दे रहे इनका आचार्य व सुधारक ।।
स्वामी व संन्यासी बने मजदूर सरकारी।।।।
योग, ध्यान, अध्यात्म की बस करते बकबक ।।
पांच वर्ष का लूट का एजेंडा है।।।।
भारत का कोई भी राजनीतिक दल हो ।।
लूट, लूट बस लूट ही चल रही।।।।
कल, आज या आने वाला कल हो ।।
विकास नाम पर तो कहीं गरीबी नाम पर।।।।
चल रहा नेताओं का लूट का धन्धा ।।
मूढ़ कार्यकत्र्ता बस पिछलग्गू बना है।।।।
बुद्धिमत्ता छोड़कर बन चुका है अन्धा ।।
स्वदेशी नाम पर तो कहीं राष्ट्र नाम पर।।।।
चल रहा है समस्त भारत को बरगलाना ।।
योग व अध्यात्म बने अड्डे व्यापार के।।।।
पीछे छूट गया है कतई समझना-समझाना ।।
गीता ज्ञान की धज्जियां उड़ा रहे हैं।।।।
धर्मगुरुओं संग नकली नेता हमार ।।े
बोलें तो जवाब में मिलती धमकियां।।।।
कोई-कोई नहीं ऐसे ही हैं सारे ।।
सबसे बड़ा घोटाला नोटबन्दी के नाम पर।।।।
सर्वत्र जोर सुनो यहां भ्रष्टाचार का ।।
गरीबी, बदहाली, लूट का साम्राज्य।।।।
पारावार नहीं कोई यहां अनाचार का ।।
भाषणों से ही यदि राष्ट्रविकास होता।।।।
कबका सुनो यहां हो चुका होता विकास ।।
सोच, शैली व नीयत राष्ट्रविरोधी इनकी।।।।
घटिया स्तर के इनके सभी प्रयास ।।
गंगा, गाय, गायत्री, गीता सुनो।।।।
भारत राष्ट्र मंे आज भी हैं उपेक्षित ।।
इनके नाम पर वोट मांगने वाले।।।।
राष्ट्र का छोड़कर देखते स्वहित ।।
खानापूर्ति हर विभाग में चल रही।।।।
ज्यादा ही बढ़ चुकी यहां रिश्वतखोरी ।।
झूठा राष्ट्रवाद इनका-बस सपने दिखलाते।।।।
प्रत्येक नेता का कर्म लगता हरामखोरी ।।
भारत राष्ट्र पुकार रहा है सुनो।।।।
नेता व धर्मगुरु कतई नहीं सुनते ।।
सुधारक व संन्यासी व्यापारी में लगे हैं।।।।’
गरीब भारतीय बस सिर धुनते ।।
समझो भारतीय नेताओं की धूर्तता को।।।।
धर्मगुरु व सुधारकों के कपटजाल को ।।
संन्यासी रूपी व्यापारियों को समझो।।।।
योग व अध्यात्म नाम पर उड़ाते माल को ।।
राष्ट्र रक्षा व संस्कृति रक्षा भार जिन पर।।।।
वे सब ही इनके भक्षक बने हैं ।।
गिनती इनकी कोई कमती न आँकना।।।।
भारत धरा पर ये दुष्ट धूर्त घने हैं ।।
विवेक जगाओ सभी भारतवासी।।।।
काम लो बुद्धिमत्ता व तर्क से ।
राष्ट्र व संस्कृति का विकास तभी होगा।।।।
आर्य वैदिक धर्म बचेगा बेड़ा गर्क से ।।

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