मैं कहता आंखन देखी
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जीवन जीना मुश्किल कितना!
हिमालय पर्वत ऊंचाई जितना!!
निराशा दुष्टा साथ नहीं छोडती
पता नहीं क्यों लगाव है इतना!!
यह जीवन भी क्या जीवन है!
तृप्ति का नहीं खिला सुमन है!!
हर दिशा से उपेक्षा व प्रताडना
बना विरोधी यहां प्रत्येक जन है!!
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