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बापू के तीन बदरो का सच्च
गरीब अपने को बचाए तो अपराधी
अमीरो को दूसरो को मारने की अजादी
कैसा है यह भारत का सविधान
जहा योग्य गरीब का न कोइ माए सम्मान/
देश लूट्कर भी कहलाते देश के रक्षक
कौन है इनसे बडा यहा राष्ट्र भक्षक
देश की जय जयकर के नारे लगाते
सबसे बडॆ य़ॆ राष्ट्र भक्त कहलाते/
कोर्ट कचहरी इनके रखवाले
जब चाहे किसी से रिश्वत खा ले
सदैव घूमते है उन्मुक्त होकर
राष्ट्रविनाश को उत्सुक हाथ धोकर/
कुछ नही बिगाड सकता इनका कानुन
भष्टाचार का है सवार इन पर जुनून
कानून तोड्ते ये होकर निर्भीक
ऎसी व्यवस्था यहा धिक धिक/
अरबो लूट्कर बने है राष्ट्र्वादी
देश हेतू केवल लाए है बर्बादी
राष्ट्र कल्याण का कोई नही ख्याल
राष्ट्र को बेच कर बने है दलाल
अपने बच्चो को पढाते केवल आग्लभाषा
राष्ट्र्भाषा से इन्हे चिढ हो जाती हताशा
देश को लूट कर बना रहे है माल
विदेशी शराब से पैदा करे देशी ख्याल/
कुछ भी बोले तो जाओगे मारे
देशद्रोही बने है देशभक्ति सारे
चुप रहो अपना अस्तित्व बचाओ
देशभक्ति के पागलपन को भगाओ/
बापु के प्रसिद्ध तीन बदर
सच कहो तो हो जाओगे अन्दर
चुप रहो बुराई को देखकर
मारे जाओगे सच सुनोगे अगर/
तीनो बन्दर गाधी की सोच के प्रतीक
जो हो रहा वह रहा सब ठीक
सिखा दिया पुरे भारत को दमन करना
ऎसे पाखडो से भारत की गुजर ना/
एक बन्दर हाथ रखे है आखो पर
आखे बद कर लो बुराई को देखो अगर
टाग न अडाओ किसी दूसरे के मामले
कुछ न कहो अगर किसी का घर जले/
कानो पर हाथ रखे बन्दर दूसरा
चीखे न सुनो कोइ जिया या मरा
चुपचाप चलने दो कुछ न कहो
देखो, सहो, केवल सहो/
तीसरा बन्दर किए है अपना मुह
सच बोलने का पथ है दुरुह
जैसा देखा है वैसा मत बोलो
परिस्थिति देखकर ही मुह खोलो/
सच बना है अपराधियो का गुलाम
कुच भी करने मे समर्थ ये सरेआम
कानून कुछ भी नही सकता इनका बिगाड
यही इनका रक्षक, यही इनकी आड/
बापू ने ओ कभी, ऎसा न कहा था
तपस्या की थी, दुखो को सहा था
चेलो ने इनको , खूब किया बदनाम
कर रहे एकत्र, माल वे हराम/
सारी शिक्षाए, हुई धूल-धुसरित
अनेक राष्ट्र, है अभी अनुत्तरित
गाधी के नाम पर, लूट मचा दी
झूठी बाते यहा, सत्य कह जचा दी/
आचार्य शीलक राम कृत ” लूट सके तो लूट” नामक पुस्तक से ली गयी कविता/
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