मैं कहता आंखन देखी
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महापुरुषो की कुकर्म लीला
वे कहते कागज की लेखी
मै कहता आखन की देखी
सब यहा पर है ठकोसला
व्यवहार नही है किसी का भी भला
इस तरह करने से लाभ मिलेगा
सम्पन्नता का फूल खिलेगा
लेकिन इन उपेदेशो से क्या होना है
जो मिला है उसको भी खोना है
जीवन पर शाश्त्र क्यो भारी
समझ पत्थर क्या पडे हमारी
निज अनुभव मे बहुत वजन है
हर कोइ अपना स्वय सजन है
इन महापुरुषो के पीछे क्या भागना
कौन ऎसा जो इन पर दाग ना
स्वय करे तो बताए लीला
अन्य करे तो क्यो नरक का सिलसला
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