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न लोक तंत्र, न कुलीन तंत्र,
न गणतंत्र, न भीडतंत्र,
न गुणतंत्र, न समाजवाद,
त्रिकालसत्य यहां शोषणवाद ।
न साम्यवाद, न अधिनायकवाद,
न हिटलरवाद, न नाजीवाद,
न व्यक्तिवाद, न समूहवाद,
सर्वव्यापक यहां है शोषणवाद ।
न योगवाद, न भोगवाद,
न त्यादवाद, न पलायनवाद,
न स संयासवाद, न ब्रह्मचर्यवाद,
सर्वस्वीकृत धरा पर शोषणवाद,
न इहलोक, न परलोक,
खून चुसने को बने सब जोक,
दर्शन सबका, शोषणवाद
बच्चे व बूढे, सबको ही याद है ।
नेता गुरु सब शोषण करें मिलकर,
लूटे जनता को, ताकत से खुलकर,
संत व मंहत सब, इस दुष्चक्र में सम्मलित,
समझते हैं मानव को, निकृष्ट व पददलित ।
क्या कर रहे जग में, भगवान व अवतार,
सब मिलकर ये, मानवता की पीठ पर सवार,
इनका शोषण तो अन्यों से गहरा,
लूट खशोट में इनका, झंडा है फहरा ।
स्वामी व सद्गुरु यहां जमघट के जमघट,
उदर पहाड सम इनके, पक्के भॊजन भट्ट हैं,
मोहताज माया के, पैसे-पैसे को तरसते हैं,
धर्मावतार कहलाते, प्रवचन रुप में बरसते ।
देखना शोषण, शॊषण सुनना,
चुनाव भी शॊषण, शोषण चुनना,
सर्वाधिक शोषण, नेता बस नेता,
देता कुछ नहीं, लेता ही लेता ।
अध्यात्म भी शोषण, शोषण है योग,
बस करते हैं, निरर्थक उद्योग,
सर्वसृष्टि के, शोषक ये हैं,
सर्वव्याधि के, पॊषक ये हैं ।
बाजार में शोषण, शोषण जंगल में,
अहित में शोषण, शोषण मंगल में,
कहां नहीं शोषण, बताऒ आकर,
किया नहीं गलत, यह सत्य सुझाकर ।
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