मैं कहता आंखन देखी
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गरीब फटेहाल
बेबस और लाचार हूं,
क्योंकि मैं साहित्यकार हूं।
इज्जत ही मेरी कुंजी है।
बचपन से ही लिख रहा हूं।
अब भी लिख रहा हूं।
किताबें छपी हैं हजार,
लाखों प्रशंसक हैं मेरे यार।
पर
गरीब हूं,
बिटिया हैं चार,
रख चुकी है पांव,
जवानी की दहलीज पर।
पर,
नहीं हो सके हैं,
बिटिया के हाथ पीले।
क्यों?
क्योंकि मैं लिखना जानता हूं
कमाना नहीं
अब कहां से
दहेज के पैसे जुटाऊं?
क्या हाल बताऊं अपना
एक शाम भोजन कर,
पेट पाल रहा हूं,
कभी नमक-रोटी
तो कभी मांड-भात से
गुजारा करता हूं
नित्य दिन
गरीबी से जूझता हूं।
फटे कपडे से
बदन ढकता हूं।
क्योंकि मैं साहित्यकार हूं,
मुफलिसी में जीना सीख लिया,
परिवार को भी सीखा दिया,
इसलिए मैं खुश हूं।
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