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शहरों व ग्रामीण आंचल में नित नये खुल रहे विद्यालयों ने आज शिक्षा को पूर्ण रुप से व्यापार का दर्जा प्रदान कर लिया है। शिक्षण संस्थान इस समय व्यवसाय के केन्द्र बन चुके हैं। आज की शिक्षा जहां भीतर की शुद्धी करके अपने आचरण एवं व्यवहार को संवेदनशील व करुणापूर्ण बनाने की कोई विधि व प्रक्रिया नहीं देती, वही यह भौतिकवाद के क्षेत्र में भी असफल है तथा मध्यम्वर्ग को भी पूरी तरज संतुष्ट नहीं कर पा रही।
निजी विद्यालयों मे शिक्षा के नामे पर अनेक तरह की भ्रातियां फैलाकर प्ररिक्षा परिणाम घोषित किए जाते है जो सच्चाई से कोशों दूर होते हैं। कुछ विद्यालयों को यदि छोड भी दिया जाए तो भी अस्सी प्रतिशत विद्यालयों में मोटी फीस लेने के बाद भी वहां सही शिक्षा तो उपलब्ध नहीं हो पाती इसके साथ-साथ शुद्ध पानी, कमरे, बेंच, पेड आदि होते ही नहीं।
शिक्षकों की व्यवस्था कतई नहीं होती। शिक्षा विभाग द्वारा जारी किए गए नियमों की धज्जियां उडाकर दसवीं व बारहवीं उत्तीर्ण छात्रों को अध्यापक के रुप में रखा हुआ होता है। जिनको अभी स्वयं ही पढना नहीं आता वे अन्यों को क्या खाक पढाएंगे? भोले तथा मासूम बच्चों का जीवन बर्बाद करने की पूरी व्यवस्था वहां पर उपलब्ध होती है। जहां पर सरकारी विद्यालयों के शिक्षक मोटी तन्ख्वाहें पाकर भी छात्रों को कुछ नहीं पढाते वहां निजी विद्यालयों में दो हजार से लेकर चार हजार रुपये देकर अन्जान व अज्ञानी शिक्षकों को रखकर मासुम बच्चों के जीवन साथ भद्दा मजाक किया जाता है। शैक्षिक सत्र में तैयारी पूरी हो नहीं पाती, अत परीक्षा परिणाम उंचा दिखाने की होड में निजी व सरकारी विद्यालयों से शिक्षक स्यंव परीक्षा भवन में जाकर नकल करवाते हैं।छात्रों से चंदा एकत्र करके परीक्षा भवन में तैनात स्टाफ को खुश रखा जाता है। शिक्षक ही शिक्षा के सबसे बडॆ दुश्मन बन चुके हैं।
विद्यालयों का ही नहीं विश्विद्यालयों का भी हाल बहुत बुरा है। उच्च शिक्षण संस्थाओं के शिक्षक अच्छी सुविधाएं पाकर भी हर शैक्षिक सत्र में सुविधाएं पाने हेतु हड्ताल करते रहते हैं। छात्रों की इन्हें कोई चिन्ता नहीं है। अच्छा शिक्षक वह है जो छात्रों मे जिज्ञासा व प्रश्न पैदा करे तथा उनके समाधान देने की कोशिश करे महाविद्यालयों व विश्व्विद्यालयों के शिक्षकों से यदि छात्र कोई प्रश्न पूछ लेते है, तो ये शिक्षक छात्रों की संतुष्टि तो अपने अधकचरे ज्ञान से कर ही नहीं पाते हैं,ऎसे छात्रों को वर्ष भर प्रताडित भी किया जाता है। ऎसे शिक्षकों के होते शिक्षा की दुर्गति तो होना ही है तथा हो भी रही है। जो बच्चे गोबर गणेश बने कक्षा में बैठे हों तथा शिक्षकों की चापलुसी करते हों, उन्हीं को सही अनुशासित छात्र माना जाता है। महाविद्यालयों व विश्व्विद्यालयों में हर कक्षा में रुपये लेकर अयोग्य, अज्ञानी तथा गलत छात्रों को प्रवेश देकर जहां शिक्षा के स्तर को गिराया ही जा रहा है, साथ ही इन संस्थाओं को भॆड बकरियों व भैंसों के मेलों की शक्ल भी दे दी गई है। प्रतिभान, बुद्धिमान विधार्थी तो रुपयों के अभाव में कहीं प्रवेश ही नहीं पाकर दर-दर की ठोकरें खाने को विवश है वहीं पर जडबुद्धि, मूर्ख, शरारती, कमजोर स्मृति के गुंडाटाइप छात्र रुपयों के बल पर कहीं पर भी प्रवेश ले लेते हैं तथा शिक्षा संस्थानों के माहौल को दुषित करते हैं। आज शिक्षा पाने हेतु बुद्धि, प्रतिभा व स्मृति की नहीं रुपयों की जरुरत है। ऎसी शिक्षा से कैसे नागरिक पैदा होंगे, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
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