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शास्त्रों का सत्य कहां है।
कोटि-कोटि वर्षों से जो कहा है॥
उसके दर्शन यहां नहीं होते।
उसके चक्कर में क्यों जीवन खोते॥
यदि यहां है तो क्यों नही होता।
वैसा ही होता जैसा बोता॥
कर्मवाद का उड रहा मखौल।
दुष्ट सुख भोग रहे बिन तोल॥
यदि वास्तव में है भगवान।
क्यों वैभब भोगते कुकर्मी बलवान॥
कुकर्मों का फल उन्हें क्यों नहीं मिलता।
उसकी मर्जी बिन पत्ता नहीं हिलता॥
कुकर्मीयों के सामने प्रभु लाचार।
दुखी रहें जो करते सदाचार।।
हो रही नयाय धर्म की हानि।
सत्यता बेचारी न जाए पहचानी॥
दुष्ट फल रहे जनता को लूटकर।
गरीब कहां जाए, इनसे छूट कर॥
या तो मर जाऒ, या इन्हें सहो।
कोई दार्शनिक, कुछ तो कहो॥
क्रांति करो तो भी मरना है।
इनके जीवन में नहीं उभरना है॥
सोवियत संघ का क्या हुआ हाल ।
महत्त्व्पूर्ण है यह जानना सवाल ॥
दुष्ट घूम रहे, सीने तानकर।
अपने आपको, बलवान जानकर॥
बिना किसी भय, दे रहे चुनौती।
हानि उनकी यहां, कोई नहीं होती॥
क्यों नहीं मिलती, इन्हें तुरंत सजा।
अपनी विजय की, ये फहरा रहे ध्वजा॥
अच्छों की खिल्ली, ये ऊडा रहे हैं।
कितने आंसू यहां, उनके बहे हैं॥
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