Menu
blogid : 1027 postid : 55

नव वर्ष की शुरुआत पर यह भारतीय विरोधी हुडदंग क्यों ?

मैं कहता आंखन देखी
मैं कहता आंखन देखी
  • 68 Posts
  • 110 Comments

नया साल शुरु होने पर जो शोर शराबा, हाय तोबा एवं धींगामस्ती राजधानी तथा अन्य बडॆ शहरों में युवाओं द्वारा शराब पीकर व लडकियों के साथ अश्लील नृत्य करके की जाती है, वह क्या दर्शाती है? वह किस सोच, जीवनपद्धति एवं संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है? फाइव स्टार होटलों में तथा विशेषकर शहर की सडकों पर युवावर्ग जो अनुशानहीनता, उच्छृंखला एवं पागलपन दिखता है, वह किस बात का प्रतीक है? कौन से आदर्शों से प्रेरित होकर युवा वर्ग ऎसी हरकतें कर रहा है? अमीरों के बिगडॆ हुए लडके तो पहले ही ऎसा कर रहे थे लकिन अब तो मध्यम वर्ग के युवा भी छॊटे-छॊटे शहरों की सडकों पर या विश्वविद्यालयॊं में ऎसा अश्लील, असामजिक, अनैतिक एवं पाश्चातय संस्कृति से सरोबार प्रदर्शन करने लगे हैं। इन बिगडैल अमीर शहजादों को तथा मध्यमवर्ग के कुंठित व हताश युवकों को भारतीय नववर्ष की कोई सुध नहीं है। यह सब कुछ नव वर्ष को मनाने का जो तरीका इन्होंने ईजाद कर रखा है वह किसी भी तरह उचित नहीं है। अंग्रेजी नव वर्ष बदलने पर जो खुलेआम शराब में धूत होकर तथा लडकियों के साथ अश्लील हरकतें करते हुए उनका इस भोंडे तरह से उत्सव मनाना किसी भी तरह से ठीक नहीं है। नववर्ष को मनाने की आड में क्या किसी भी तरह की अभद्रता, एवं नंगापन करने का लाइसेंस मिल जाता है? इस सबसे हम अपनी संपन्न एवं पुरातन संस्कृति से तो दूर हो ही रहे हैं इसके साथ ही पुलिस से सामने भी धर्म संकट पैदा हो जाता है, राहगीर परेशान होते हैं तथा स्वयं इस बेवकूफी पूर्ण हुडदंग को करने वाले भी घायल हो जाते है। और अजीब बात यह है कि आधुनिकता से नाम पर सब तरह का पागलपन, सब तरह की मूढताएं एवं सब तरह के बेहोशी से कार्य चल रहे हैं। कोई इन्हें रोकने व टोकने वाला भी नहीं है। कोई यदि ऎसा करने की कोशिश भी करे तो उसे पुरातनपंथी, गंवार, पुरानी सोच सा एवं दुनिया की रफ्तार में पिछडा हुआ कहा जाता है। पुलिस या कानुन इस कार्य को कभी भी बंद करने में सफल नहीं हो सकता। आखिरकार इस तरह हुडदंग मचाने वाले एवं पागलपन व बेहोशी का जीवन जीने वाले संपन्न तथा सभ्य परिवारों के लडके हैं वे ही यदि ऎसा करेंगे तो बाकी लोगों का क्या होगा? उत्सव मनाने व अपनी खुशी की अभिव्यक्ति का सबको हक है लेकिन इस तरह के पागलपन को खुली छूट देना किसी भी तरह से ठीक नहीं है। जैसा हुडदंग ये युवा नव वर्ष की शुराआत पर मचाते है। वह अपराध की श्रेणी में ही गिना जाएगा। इस तरह के हुडदंग पर काबू करने का दायित्व परिवारों व समाज का है। चाहे कोई भी अवसर हो युवक व विशेषकर युवतियां नव वर्ष के नाम पर अपनी उन्मुक्तता व कामुकता की आकांक्षाओं की पूर्ति कर लेने का प्रयास करते है। इस तरह का उन्हें अन्य अवसर नहीं मिल पाता । इस तरह की हताशा, कुंठित एवं दमित जीवनपद्धति की तरफ ध्यान देने व इसे रुपांतर की जरुरत है। बंद तो यह हो नहीं सकता है तथा होना भी नहीं चाहिए। क्योंकि युवाओं में आखिर उर्जा होती है। इस उर्जा से रचनात्मक एवं सृजनात्मक किया जाना चाहिए । मध्यमवर्ग की युवा पीढी जो देश को भीतर व बाहर शक्ति व सामर्थ्य का सबसे बडा स्त्रोत है उसका हताश, कुठित, तनावग्रस्त एवं व्यर्थ के पागल्पन में रहना उचित नहीं है। संस्कृति के प्रतीकों से संबंधित उत्सवों एवं पर्वों की उपेक्षा करते रहे हों तो हम कहीं के नहीं रहेंगे। एक जनवरी को उत्सव की तरह मनाया जाए तथा चैत्र मास आने पर भारतीय नव वर्ष को याद न करे तो यह निश्चित रुप से चिंता की बात है। हम सबको इस तरफ ध्यान देना चाहिए।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh