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मिस्टर गांधी या महात्मा गांधी

मैं कहता आंखन देखी
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महात्मा गांधी जी की जीवन-शैली से आइन्सटीन जैसे वैज्ञानिक प्रभावित थे। वे जिस तरह की जीवन शैली अपनाए हुए थे उसमें पहनावा, खान-पान तथा आदर्श तो महात्माओं जैसे ही थे लेकिन अनुभूति न के बराबर थी। सांसारिक जन तो केवल ऊपरी आचरण से ही प्रभावित हो जाते हैं, लेकिन समाधिस्थ योगी तो भीतर तक झांकते हैं तथा भीतरी विकास को ही महत्व देते हैं, इसलिए इस सदी के सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं विवादास्पद दार्शनिक एवं संत ओशो रजनीश ने गांधी के संबंध में कहा है कि वे कोरे आदर्शवादी थे तथा उनके महात्मा होने की घोषणा भी अन्यों ने ही की थी। स्वयं ने नहीं। गांधी तो सदैव धार्मिक तथा नैतिक व्यक्ति थे। वे मूलत राजनैतिक संत थे, धर्मिक या आध्यात्मिक नहीं। उन्होंने कभी भी किसी गुरु के सानिध्य में रहकर या स्वयं अपने प्रयास से कोई साधना वगैरह नहीं की। वे सदैव ही नैतिकता की बातें करते थे। उनका ऊपरी जीवन देखकर अनेक ने उन्हें संत या महात्मा की उपाधि दे डाली लेकिन इस तरह की उपाधियां देने वाले स्वयं संत नही थे। कोई दूसरा किसी से संत या महात्मा होने की घोषणा करना कोई महत्व नहीं रखता। समाधिस्थ पुरुष अपने बुद्धत्व की या समाधिस्थ होने की घोषणा स्वयं ही करते हैं। कोई दूसरा किसी के बुद्ध्त्व या समाधिस्थ होने की घोषणा कदापि नहीं कर सकता, केवल गुरु ही कुछ मामलों में ऎसा करने का अधिकार रखता है। सब भगवान या संत स्व घोषित ही हैं, पर घोषित भगवान या संतों का मूल्य दो कौडी का भी नहीं है। इस सदी में जिन प्रसिद्ध व्यक्तियों को सर्वाधिक कम या गलत समझा गया है उनमें गांधी जी एक हैं। स्वार्थी राजनैतिक नेताओं ने गांधी जी को ऎसी जगह पर बैठा दिया है जहां गांधी जी के उदाहरण ही दिए जा सकते हैं उनकी शिक्षाओं को जीवन में उतारना खतरे से खाली नहीं है। स्वार्थी व धोखेबाज राजनैतिक नेता राजनीति से धर्म को दूर करने की बात तो सदैव करते रहते हैं लेकिन राजनीति से अधर्म को दूर करने की बात कोई भी नही कर रहा है। सबने राजनीति को लूट का अड्डा बनाकर रख दिया है। और गांधी को एक अच्छा, बेचारा व असहाय साधन मात्र बनाकर रख दिया है-सत्ता प्राप्ति का साधन। गांधी जी जिस सरलता, स्पष्ट्ता, शुचिता एवं शुद्धता की बातें किया करते थे वे सब आज के राजनैतिक नेताओं में उपरी तौर पर भी दिखाई नहीं देती।
एक प्रसिद्ध योगी श्री योगेश्वरानंद जी ने कहा है कि अन्य तो क्या गांधी जी ने अपने जीवन में अहिंसा को भी नहीं साधा था। यदि वे अहिंसा की साधना में सफल हो पाते तो नाथूराम उनकी हत्या कभी नहीं कर पाते। गांधी जी के जीवन में झूठ का भी हिस्सा था लेकिन प्रसिद्ध महापुरुषों के संबंध में सच कहना खतरे से खाली नहीं है। अधिकांशतया तो ऎसी बातों को अखबार छापते ही नहीं हैं, कुछ ही अखबार इस प्रकार की हिम्मत कर पाते है।गांधी जी ने घोषणा की थी कि भारत-पाक का विभाजन मेरी लाश पर होगा लेकिन भारत व पाक का विभाजन हुआ तथा गांधी जी जीवित रहे। जिन्होंने अहिंसा व सत्याग्रह से आजादी पाई(ऎसा मान लिया गया है) वे ही महापुरुष आजादी के समय पश्चिमी बंगाल के एक गांव में टूटी हुई चारपाई पर लेटे हुए थे। उनको तो उस समय दिल्ली में होना चाहिए था। वास्तव में भारत के राजनैतिक नेताओं ने सता प्राप्ति के लिए गांधी जी को खूब इस्तेमाल किया है। नेहरु व उनकी कांग्रेस ने आजादी मिलने तक उनको खूब भूनाया। लेकिन जैसे ही यह आभास हुआ की अंग्रेज भारत को छोड देंगे, तुरन्त कांग्रेस ने गांधी जी को एक तरफ फैंक दिया। आखिर क्यों नेहरु, पटेल आदि तथा कांग्रेस पार्टी राजनीति में शुद्धता, शुचिता, स्पष्ट्ता, पवित्रता, ईमानदारी व ग्रामीण विकास को भूल गए।

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