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दरिद्रता

मैं कहता आंखन देखी
मैं कहता आंखन देखी
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ऎसी व्यवस्था चली हुई है, गरीब का कोइ नहीं कोई जीना
सम्मान मिलता यहां पर उसी को, जो ठग, डाकू और कमीना
योग्यता की यहां पूछ नहीं है, ठगी, बदमाशी, सिफारिश का राज
किए हुए का फल नहीं मिलता, बिन किए अमीर विलास भोग रहे आज
किसमें कितनी हिम्मत है, जो भ्रष्ट व्यव्स्था का करे विरोध
फुसर्त नहीं मिलती पेट भरने से, क्या लाभ करण से यहां क्रोध
रिश्वत, सिफारिश का धन्धा करते, उन्ही का जीवन खुशहाल,
किसी तरह की मेहनत नहीं करनी, मुफ्त उडाएं माल,
व्यव्स्था और भग्वान बनें उन्हीं के, जो ठगी, बदमाशी का करते धन्धा
सब कुछ उनके पीछे चलता, कोई पर न हिलाए परिन्दा,
मेहनत यहां करे कोई कब तक, फल मिला न कोई अब तक,
बिन किए भोगे, करते मरें. यह व्यव्स्था चलेगी कब तक

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