मैं कहता आंखन देखी
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पानी में मीन प्यासी।
क्यों सुन आवें हांसी॥
डा-कचरा, डाल रहें हैं
खुद को स्वच्छ, खूब कहें हैं
प्लास्टिक कचरे से भरे तालाब
निरोग समाज, देख रहे ख्वाब
नदी, झील, पोखर व झरनें
पीकर पानी, हो जाए मरने
आदि स्रोत समुद्र मध्य में,
सब नदियां बनी हैं विनाशी।
खरपतवार से विषाक्त हैं खेत
किसान, नेता अचेत
धुआं उगलें, बडे करखानें
सुराख बन रहे, ओजोन पर्त
पीने से पानी, बिमार हो रहे
दिल्ली, कानपुर, मुम्बै, काशी ।
सात समुन्द्र, विषाक्त हुए
मानव प्राणी, जहां भी गये
मच्छ्ली, कच्छुए और कैक्ट्स
सर्प चिल्लाएं, अब तो करो बस
व्हेल मर रहीं, और मगर
सब विवश हैं, छोडनें को घर
मानव सब को मार रहा, खुद को दे शाबाशी ।
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