मैं कहता आंखन देखी
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चाह नहीं मेरी चांदी की
पायल मैं पहनूं
चाह नहीं मेरी मेम साहिबा
बन कार में इठलाउं ।
चाह नहीं मेरी चांदी के
बर्तनों में खाना खाऊं
चाह नहीं मेरी किसी धनवान
के घर ब्याही जांऊ ।
मेरी चाह बस इतनी है
किसी दहेज लोभी के घर
पिता जी मुझे ब्याह न देना
तेल छिडककर जहां
सास ननद, जेठानी, पति ने
फूंकी हैं नवनौवनाएं अनेक ।
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